नशा एक अभिशाप !
नशा एक ऐसा अभिशाप है जिसके कारण इंसान का अनमोल जीवन अकाल मृत्यु की भैंट चढ़ जाता है। लोग सिगरेट , तम्बाखू ,शराब ,गांजा ,भांग ,अफीम , चरस , स्मैक , कोकीन , ब्राउन शुगर जैसे घातक दवाओं और मादक पदार्थों का उपयोग नशे के लिए करते हैं। इन पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक , मानसिक और आर्थिक हानि तो होती ही है साथ ही पुरे समाज पर इसका बहुत नकारात्मक असर पड़ता है। नशे का शिकार हो चुके व्यक्ति अपने ही घर में बोझे के समान हो जाते हैं और उन्हें समाज में भी घृणा की द्रष्टि से देखा जाता है। वे अपने नशे की जरुरत को पूरा करने के लिए अपराध का सहारा लेने लगते हैं तथा शांतिपूर्ण समाज के लिए भी अभिशाप बन जाते हैं। इस दुर्व्यसन से छोटे-छोटे स्कूली बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग प्रभावित हो रहा है। दुर्भाग्य की बात है की इस पाश्चात्यीकरण के समय में युवा नशे को फैशन और एन्जॉय करने का साधन समझ कर अपना लेते हैं और इसकी गिरफ्त में फसते चले जाते हैं। उनका कैरियर दिशा हीन हो जाता है, इस लत का शिकार व्यक्ति खुद तो बर्बाद होता
ही है साथ में अपने पुरे घर को भी बर्बाद कर देता है / कई जगह ये कहावत मशहूर है कि "अगर आपको किसी से बदला लेना है तो उससे लड़ाई न करिये बस उसे स्मैक की लत लगा दो वे इंसान खुद तो मरेगा ही साथ में अपने सरे घर को ले डूबेगा " / इन सभी नशीले पदार्थों का हमारे सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए /
ही है साथ में अपने पुरे घर को भी बर्बाद कर देता है / कई जगह ये कहावत मशहूर है कि "अगर आपको किसी से बदला लेना है तो उससे लड़ाई न करिये बस उसे स्मैक की लत लगा दो वे इंसान खुद तो मरेगा ही साथ में अपने सरे घर को ले डूबेगा " / इन सभी नशीले पदार्थों का हमारे सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिए /
हम सभी जानते हैं कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है इसके सेवन से कैंसर होता है यह वैधानिक चेतावनी हर उत्पाद पर लिखी भी होती है /तम्बाखू के सेवन से तपेदिक , निमोनिया मुख -फेंफड़े और गुर्दे का कैंसर होने की संभावनाएं होती हैं। इससे चक्रीय हृदय रोग और उच्च रक्तचाप की शिकायत भी रहती है। फिर भी हम इसका सेवन करते है, और धीरे-धीरे इसके आदी हो जाते हैं फिर हम इन नशीले पदार्थीं का सेवन करना चाहें या न चाहें इनकी तालाब हमें इनका सेवन करने पर मजबूर कर देती है /
समाज में पनप रहे विभिन्न अपराधों का एक कारण नशा भी है / नशे की प्रवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ अपराधियों की संख्या मई भी वृद्धि हो रही है / कोकीन , चरस , अफीम ऐसे उत्तेजक नशे हैं जिनके प्रभाव में कई बार व्यक्ति भयानक अपराध कर बैठता है /
-:इसे जरा ध्यान से पढ़ें :-
:- शराब पिने वाले व्यक्ति का रोज का 100/- रु खर्च मान कर चलें ,तो महीने का 3000/-रु और साल का 36000/-रु होते हैं। एक व्यक्ति अपने जीवन में 50 साल शराब पीता है तो 1800000 /-रु फिजूल खर्चा कर देता है
:- सिर्फ आधे साल की बचत 18000 /- रु पोस्ट ऑफिस में फिक्स (किसान विकास पत्र )जमा कर उसे 42 11 महीने रिन्यू करते रहने से यह रकम 570000 /- रु हो जाती है। जो कि आपकी जिंदगी के लिए पेंशन या बच्चों की पढाई के काम आ सकती है।
:- बीड़ी या सिगरेट पीने वाले या तम्बाखू का सेवन करने वाले व्यक्ति का रोज का 20/- रु खर्च मान कर चलें ,तो महीने का 600/-रु और साल का 7200/-रु होते हैं। एक व्यक्ति अपने जीवन में 50 साल इसका सेवन किया तो 360000/-रु फिजूल खर्च में रख हो जाते हैं तथा कैंसर को न्यौता देते है /
:- अकेले भारत में एक दिन में करीब 20 करोड़ की सिगरेट पी जाती है। इस तरह एक वर्ष में लगभग 100 से ज्यादा का धुआँ हो जाता है और कैंसर को निमंत्रण भी !
डॉक्टरों के अनुसार शराब के सेवन से पेट और लिवर ख़राब होता है। इससे मुख के छाले और पेट का कैंसर भी हो सकता है। पेट की नालियों और रेशों पर भी इसका प्रभाव होता है ,यह आंतों को भी बहोत नुकसान पहुंचती है जससे अल्सर हो जाता है। इसी तरह भांग गांजा जैसे नशीले पदार्थ इंसान के दिमाग पर बुरा असर डालते हैं /इन सभी मादक द्रव्यों से स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ समाज , परिवार और देश को भी गंभीर है। किसी भी देश का विकास उस देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है , लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य ख़राब होगा तो देश भी कभी विकास नहीं कर सकता। नशा एक ऐसी बुराई है जो व्यक्ति को तन -मन-धन से खोखला कर देती है। इस बुराई को समाप्त करने क लिए शाशन व समाज के हर तबके को आगे आना होगा।
ये कैसी विडंबना है कि सामाजिक हितों से जुड़े तमाम मुद्दों व उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावों पर हमारी सरकारें और सामाजिक संगठन बहुत जोर शोर से आवाज उठाते हैं परन्तु इस तरह की समस्याओं पर कोई भी सामाजिक संगठन और राजनैतिक दाल न ही आवाज उठाते हैं और न ही इस गंभीर समस्या के निदान की वृहद स्तर पर पहल करते हैं। कुछ जागरूक व जिम्मेदार नागरिक स्थानीय स्तर पर प्रयास जरूर करते रहते हैं लेकिन वह इस बुराई को जड़ से मिटाने में कभी भी पूर्ण समर्थ नहीं हो पाते हैं।
सबसे पहले हमें शराब से होने वाले सामाजिक दुःष्प्रभाव व उससे होने वाले जन -धन की हानि के बारे में विचार करना चाहिए। शराब का सेवन समाज में हर स्तर पर किया जाता रहा है , कुछ लोग अपनी सोसाइटी में दिखावे के लिए शराब का सेवन करते हैं ऐसे लोग अच्छे ब्रांड की शराब का सेवन करते हैं। और दिन में एक बार या कुछ खास अवसरों पर इसका सेवन करते हैं। आर्थिक रूप से सुद्रण ये वर्ग सिर्फ मौज-मस्ती के लिए ऐसा करते हैं। मध्यमवर्गीय व निम्नवर्गीय लोगों के पास शराब पीने के अनेकों कारण होते हैं जिनके विषय में प्रायः हम सभी लोग जानते हैं कुछ लोग शौख में पीने लगते हैं तो कुछ लोग सांगत के असर से। कुछ लोग सीमित व संतुलित रहते हुए समाज में अपनी इस बुराई को छिपाए रखते हैं तो कुछ लोग अतिरेक में बहकते हुए स्वछंद हो जाते हैं ऐसे लोग जब एक बार सामाजिक मर्यादाओं की सीमाओं का उल्लंघन कर देते हैं तो फिर वह समाज की मुख्य धारा से काटते चले जाते हैं।
शौकिया तौर से लती हुए लोग जब आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं तो परिस्थिति भयावह रूप ले लेती है खुद का रोजगार तो प्रभावित होता ही है सूदखोरों के चांगुल में फस कर कर्जदार हो जाते हैं और तब उनका ये शराब रूपी "रोग " गम , उलझन व परेशानी से मुक्ति पाने की दवा भी बन जाता है। उन्हें शराब में ही हर समस्या का समाधान दिखाई देता है। ऐसे मुश्किल समय में जब कोई करीबी उन्हें समझाने या सुधरने का अतिरिक्त प्रयास करता है तो कई बार ऐसी अवांछित घटनाएं हो जातीं हैं जिनके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
ऐसे लोगों पर समाज का दखल व असर नहीं होता क्यूंकि लोगों के समझने पर ये लोग अक्सर एक ही जुमले का प्रयोग करते हैं " तुम्हारे बाप के पैसे की पिटे हैं क्या " और तब हर स्वाभिमानी व्यक्ति ऐसे लोगो से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है. ऐसे में भुक्तभोगी परिवार समाज से अलग-थलग सा पड़ जाता है। कोई उनका दुःख सुनने और समझने को तैयार नहीं होता। करीबी रिश्तेदार भी यह सोचकर साथ छोड़ देते हैं की कब तक इनकी मदत करें। सबसे ख़राब स्थिती उन बच्चों की होती है जो किशोरावस्था से गुजर रहे होते हैं , माँ-बाप रोज की किच -किच का उनके अंतर्मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे बच्चे मानसिक रूप से अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ जाते हैं , घर में अच्छा माहौल न मिलने के कारण उनके मन में समाज और दुनिया के लिए द्वेषभाव पलने लगता है। इन बच्चों के दुःख को समझने वाला कोई नहीं होता और न ही हमारी सरकारें इस विषय पर गौर करतीं हैं।
किसी भी नशे से से मुक्ति के लिए सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम वैसे तो संयम कई समस्याओं का समाधान है। सेल्फ मोटिवेशन भी नशा मुक्ति में कारगर साबित होता है , किसी को मोटिवेट करके या किसीके द्वारा मोटिवेट होकर हम अपने नशे पर अंकुश लगा सकते हैं। हम सभी को अपने स्तर पर अपने समाज ,परिजन व मित्रों को जो की नशे की लत का शिकार हुए हैं उन्हें नशे के दुष्परिणामों से परिचित करना चाहिए और उन्हें मोटिवेट करके संयम का रास्ता दिखा कर नशा मुक्ति मैन उनकी मदत करनी चाहिए।
व्यसनों से मुक्ति पाने के लिए नशा करने वाले साथियों से अधिक से अधिक दूर रहना चाहिए। महमानो का स्वागत नशे से न करें। घर में या जेब में बीड़ी सिगरेट न रखें। बच्चों के हाथ बाजार से कोई नशीला पदार्थ न मँगाए, स्वयं को किसी न किसी रचनात्मक कार्य मई व्यस्त रखें , अपने अच्छे मित्रों , परिवार या चिकित्सकों की मदत लेंऔर खुद को इस धीमे जहर से दूर रखने के लिए मोटिवेट करते रहें।
नशा नाश की जड़ है। इससे बच कर रहने में है भलाई है। इन नशीले पदार्थों से छुटकारा पाने के लिए पीड़ित व्यक्ति को इलाज की आवश्यकता होती है। इस दिशा में शासन व समाजसेवी संगठनों द्वारा जिला स्तर पर नशा मुक्ति केंद्रों स्थापित किये गए हैं। इन केंद्रों में मादक पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को छुटकारा दिलाने के लिए निःशुल्क परामर्श तथा कई उपचार किए जाते हैं। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न सुचना तंत्रों के माध्यमों से नशापान के विरुद्ध लोगों में जनजागरूकता लेन के प्रयास किये जा रहे हैं। नशा मुक्ति के लिए 30 जनवरी को नशामुक्ति संकल्प और शपथ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी तरह 31 मई अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान निषेध दिवस , 26 को अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस , 2 से 8 अक्टूबर तक मद्यनिषेध सप्ताह , और 18 दिसंबर मद्य निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। पर नशे को जड़ से मिटने के लिए हमें हर दिवस को नशा मुक्ति दिवस के रूप में मानना चाहिए।
डॉक्टरों के अनुसार शराब के सेवन से पेट और लिवर ख़राब होता है। इससे मुख के छाले और पेट का कैंसर भी हो सकता है। पेट की नालियों और रेशों पर भी इसका प्रभाव होता है ,यह आंतों को भी बहोत नुकसान पहुंचती है जससे अल्सर हो जाता है। इसी तरह भांग गांजा जैसे नशीले पदार्थ इंसान के दिमाग पर बुरा असर डालते हैं /इन सभी मादक द्रव्यों से स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाने के साथ-साथ समाज , परिवार और देश को भी गंभीर है। किसी भी देश का विकास उस देश के नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है , लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य ख़राब होगा तो देश भी कभी विकास नहीं कर सकता। नशा एक ऐसी बुराई है जो व्यक्ति को तन -मन-धन से खोखला कर देती है। इस बुराई को समाप्त करने क लिए शाशन व समाज के हर तबके को आगे आना होगा।
ये कैसी विडंबना है कि सामाजिक हितों से जुड़े तमाम मुद्दों व उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावों पर हमारी सरकारें और सामाजिक संगठन बहुत जोर शोर से आवाज उठाते हैं परन्तु इस तरह की समस्याओं पर कोई भी सामाजिक संगठन और राजनैतिक दाल न ही आवाज उठाते हैं और न ही इस गंभीर समस्या के निदान की वृहद स्तर पर पहल करते हैं। कुछ जागरूक व जिम्मेदार नागरिक स्थानीय स्तर पर प्रयास जरूर करते रहते हैं लेकिन वह इस बुराई को जड़ से मिटाने में कभी भी पूर्ण समर्थ नहीं हो पाते हैं।
सबसे पहले हमें शराब से होने वाले सामाजिक दुःष्प्रभाव व उससे होने वाले जन -धन की हानि के बारे में विचार करना चाहिए। शराब का सेवन समाज में हर स्तर पर किया जाता रहा है , कुछ लोग अपनी सोसाइटी में दिखावे के लिए शराब का सेवन करते हैं ऐसे लोग अच्छे ब्रांड की शराब का सेवन करते हैं। और दिन में एक बार या कुछ खास अवसरों पर इसका सेवन करते हैं। आर्थिक रूप से सुद्रण ये वर्ग सिर्फ मौज-मस्ती के लिए ऐसा करते हैं। मध्यमवर्गीय व निम्नवर्गीय लोगों के पास शराब पीने के अनेकों कारण होते हैं जिनके विषय में प्रायः हम सभी लोग जानते हैं कुछ लोग शौख में पीने लगते हैं तो कुछ लोग सांगत के असर से। कुछ लोग सीमित व संतुलित रहते हुए समाज में अपनी इस बुराई को छिपाए रखते हैं तो कुछ लोग अतिरेक में बहकते हुए स्वछंद हो जाते हैं ऐसे लोग जब एक बार सामाजिक मर्यादाओं की सीमाओं का उल्लंघन कर देते हैं तो फिर वह समाज की मुख्य धारा से काटते चले जाते हैं।
शौकिया तौर से लती हुए लोग जब आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं तो परिस्थिति भयावह रूप ले लेती है खुद का रोजगार तो प्रभावित होता ही है सूदखोरों के चांगुल में फस कर कर्जदार हो जाते हैं और तब उनका ये शराब रूपी "रोग " गम , उलझन व परेशानी से मुक्ति पाने की दवा भी बन जाता है। उन्हें शराब में ही हर समस्या का समाधान दिखाई देता है। ऐसे मुश्किल समय में जब कोई करीबी उन्हें समझाने या सुधरने का अतिरिक्त प्रयास करता है तो कई बार ऐसी अवांछित घटनाएं हो जातीं हैं जिनके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
ऐसे लोगों पर समाज का दखल व असर नहीं होता क्यूंकि लोगों के समझने पर ये लोग अक्सर एक ही जुमले का प्रयोग करते हैं " तुम्हारे बाप के पैसे की पिटे हैं क्या " और तब हर स्वाभिमानी व्यक्ति ऐसे लोगो से दूर रहने में ही अपनी भलाई समझता है. ऐसे में भुक्तभोगी परिवार समाज से अलग-थलग सा पड़ जाता है। कोई उनका दुःख सुनने और समझने को तैयार नहीं होता। करीबी रिश्तेदार भी यह सोचकर साथ छोड़ देते हैं की कब तक इनकी मदत करें। सबसे ख़राब स्थिती उन बच्चों की होती है जो किशोरावस्था से गुजर रहे होते हैं , माँ-बाप रोज की किच -किच का उनके अंतर्मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे बच्चे मानसिक रूप से अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ जाते हैं , घर में अच्छा माहौल न मिलने के कारण उनके मन में समाज और दुनिया के लिए द्वेषभाव पलने लगता है। इन बच्चों के दुःख को समझने वाला कोई नहीं होता और न ही हमारी सरकारें इस विषय पर गौर करतीं हैं।
किसी भी नशे से से मुक्ति के लिए सिर्फ एक ही उपाय है वह है संयम वैसे तो संयम कई समस्याओं का समाधान है। सेल्फ मोटिवेशन भी नशा मुक्ति में कारगर साबित होता है , किसी को मोटिवेट करके या किसीके द्वारा मोटिवेट होकर हम अपने नशे पर अंकुश लगा सकते हैं। हम सभी को अपने स्तर पर अपने समाज ,परिजन व मित्रों को जो की नशे की लत का शिकार हुए हैं उन्हें नशे के दुष्परिणामों से परिचित करना चाहिए और उन्हें मोटिवेट करके संयम का रास्ता दिखा कर नशा मुक्ति मैन उनकी मदत करनी चाहिए।
व्यसनों से मुक्ति पाने के लिए नशा करने वाले साथियों से अधिक से अधिक दूर रहना चाहिए। महमानो का स्वागत नशे से न करें। घर में या जेब में बीड़ी सिगरेट न रखें। बच्चों के हाथ बाजार से कोई नशीला पदार्थ न मँगाए, स्वयं को किसी न किसी रचनात्मक कार्य मई व्यस्त रखें , अपने अच्छे मित्रों , परिवार या चिकित्सकों की मदत लेंऔर खुद को इस धीमे जहर से दूर रखने के लिए मोटिवेट करते रहें।
नशा नाश की जड़ है। इससे बच कर रहने में है भलाई है। इन नशीले पदार्थों से छुटकारा पाने के लिए पीड़ित व्यक्ति को इलाज की आवश्यकता होती है। इस दिशा में शासन व समाजसेवी संगठनों द्वारा जिला स्तर पर नशा मुक्ति केंद्रों स्थापित किये गए हैं। इन केंद्रों में मादक पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्तियों को छुटकारा दिलाने के लिए निःशुल्क परामर्श तथा कई उपचार किए जाते हैं। केंद्र व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न सुचना तंत्रों के माध्यमों से नशापान के विरुद्ध लोगों में जनजागरूकता लेन के प्रयास किये जा रहे हैं। नशा मुक्ति के लिए 30 जनवरी को नशामुक्ति संकल्प और शपथ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी तरह 31 मई अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान निषेध दिवस , 26 को अंतर्राष्ट्रीय नशा निवारण दिवस , 2 से 8 अक्टूबर तक मद्यनिषेध सप्ताह , और 18 दिसंबर मद्य निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है। पर नशे को जड़ से मिटने के लिए हमें हर दिवस को नशा मुक्ति दिवस के रूप में मानना चाहिए।
No comments:
Post a Comment